Thursday, August 15, 2013

आज़ादी

आज़ादी की नाभि रज्जु सत्य से जुडी हुई है। जिनके जीवन में सत्य सबसे अधिक मूल्यवान हैं, वे यदि हर पल सत्य का अनुसरण करे तो सदेव आज़ाद महसूस करते है। सत्य की डोर अनेक जीवन मूल्यों से जुडी हुई हैं। सत्य के साथ रहने का सीधा रास्ता स्वयं से सदैव सच कहने पर हैं। जब हम मुनाफे या नुकसान, चाहे व्यक्तिगत हो या हमारी किसी सामाजिक भूमिका से जुड़ा हुआ , दोनों ही से अलग हो कर सिर्फ सत्य को देखते है और उसे ही कहते है, तब हम सही मायने में सत्य को जीते हैं। भारत को आज़ादी के ६७ वर्ष हो गये हैं। आइये, आज हम सब इस बात का विश्लेषण करते हैं की हम जिस आज़ादी का हर साल अनुष्ठान करते है, उस आज़ादी के उत्तराधिकारी-- यानि के हम सब-- सही मायनो में आज़ाद है या नहीं। हर वर्ष भारतीय स्वंत्रता के इस पावन पर्व पर हम एक दूसरे को बधाई देते है, राष्ट्रीय गीत गाते है, देशभक्तिपूर्ण सिनेमा देखते है और इस बात को दोहराते हुए स्मरण करते है कि हम आज़ाद है, हमारी स्वंत्रता के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का त्याग किया है और यह स्वंत्रता ही एक नागरिक का बहुमूल्य अधिकार है। यह सब सच है। किन्तु सच यह भी हैं कि जीवन-तराज़ू में जहा एक पलड़े में अधिकार हैं, वही दूसरे में ज़िम्मेदारियाँ; और इन दोनों को संतुलित करने की जो बाट हैं वह सत्य हैं। जहाँ एक नागरिक के अधिकार हैं वहीं कुछ ज़िम्मेदारियां भी हैं। ज़िम्मेदारी नेताओं के प्रति नहीं, राजनैतिक उत्क्रांति के प्रति, ज़िम्मेदारी सिर्फ राष्ट्रीय आर्थिक विकास के प्रति नहीं, बल्कि उससे निकलने वाले पुनर्वितरण विकास के प्रति, ज़िम्मेदारी केवल राष्ट्रीय पहचान कायम रखने के प्रति नहीं, ज़िम्मेदारी वह मूल्यओं को कायम रखने के प्रति जिन पर राष्ट्र का निर्माण किया था-- स्वशासन, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, समाजवाद और गणतंत्र| अब समकालीन भारत को इन मूल्यो के हर रूप मे तोले और देखे कि क्या हम इन्हे निभा सके है?

 कई दशको का विश्लेषन तो बहुत होता है, हम एक नज़र बीते वर्ष कि ओर ही डाल लेते है| यूं देखे तो कुछ सकारात्मक बदलाव ज़रूर आये है| भारतवासी पहले से ज़्यादा जागरूक हुए है; हर मुद्दे पर आगे आने लगे है, संगठित होकर शांतिमय आंदोलन करने लगे है| जहां पहले भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसी गंभीर समस्याओं को लेकर अधिकांश उदासीन थे और केवल कुछ संगठन ही आवाज़ उठाते थे, वही समकालीन भारत ने कुछ ऐसा जन संगठित विरोध देखा है जिससे यह पता चलता है कि हवाओं का रुख बदलने कि पूरी कोशिश आरंभ हो गयी है| एक ओर उठती हुई इस आंधी को रोकने के प्रयास भी आरंभ हो गये है| हाल ही में देखे तो प्रशासनिक अधिकारिणी दुर्गा शक्ति नागपाल को किस तरह से सियासती खेल का मोहरा बनाया गया, ये ज़ाहिर है| बावजूद इसके कि यू.पी. सरकार के इस फैसले पर सब ओर से उंगलिया उठी थी, सियासती गठबंधनो के चलते इस पर खामोशी छाना शुरू हो गयी है| गंभीरता से सोचे तो सिविल सेवा के संभावित उम्मीदवारो के लिये ये कितनी हतोत्साहित करने वाली बात है| १६ डिसेंबर २०१२ को सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई 'निरभया' के लिये अब तक न्याय नहीं आया| न्याय की अपनी प्रक्रिया ज़रूर है, लेकिन बार बार प्रक्रिया की ओट लेना इरादो पर संदेह डाल देता है| इससे देश के महत्वपूर्ण शासकीय एवं न्यायकारी अंगो पर अविश्वास की स्तिथी पैदा होती है और जनसमुदाय में उदासीनता छा जाती है| इस उदासीनता के कारण नागरिक जागरूक होना छोड़ देते है और व्यक्तिगत लाभ में मग्न हो जाते है| परिणाम यह, कि इसका लाभ उठाते है सत्ता चाहने वाले|

 धर्मनिरपेक्षता के उपर कई चर्चा-विवाद हो चुके है| यदि हम उसके मर्म को समझे तो उसका मतलब इतना है की धर्म व्यक्तिगत है और इस चुनाव को हम सार्वजनिक शेत्र में ना लाये| जिये और जीने दे| आज़ादी के बाद पण्डित नेहरू ने कश्मीर के संदर्भ में कहा था कि कश्मीर का फैसला जनमत-संग्रह से होगा| लेकिन आज कश्मीरियत (जो सच में धर्मनिरपेक्षता क़ी मिसाल थी) ढुंदली हो चली है और लोगो को जीने का अधिकार भी नहीं है| हम सब जानते है कि इसे नाज़ुक विषय बताकर उग्रवादी कैसे किसी भी वैकल्पिक सुझाव को दबाने के प्रयास करते है| पर यह साहस इसलिये करना है क्योंकि कुछ सवाल है हम सबके लिये जो इन मूल्यों को शर्मिंदा कर रहे है| अपने घरो में बैठकार, सीना ठोककर यह कहना आसान है कि कश्मीर हमारा है| इससे हम देशभक्त भारतीय नहीं हो जायेंगे, बल्कि यह समझना ज़रूरी है कि एतिहासिक दृष्टि से इस संदर्भ मे हमसे कहाँ गलतियाँ हुई है और इन्हे कैसे सुधारा जाये| दोनो देशों के लिये नहीं; दोनो धर्मो के लिये भी नहीं| कश्मीर के लोगों के लिये|

 भारतीय होने से पहले सह नागरिको -भारतीयो- से संवेदना होना ज़रूरी है, चाहे वह किसी भी कोने से हो| तो मेरा आप सबसे अनुरोध है कि किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर किसी एक व्यक्ति या संस्था के कथन पर निर्भर ना रहे, चाहे वा मीडीया हो या परिजन; चाहे दोस्त हो या राजनितिग्य| हर मुद्दे पर अनुसंधान कर अनेक पेहलू इकट्ठे करे और फिर उन पर विश्लेषन करे, भारत के मूल्यों की कसौटी पर| खुद को शिक्षित कर जागरूक रहे और दूसरो से यह शिक्षा बाटें| फिर मिलेगी सम्पूर्ण आज़ादी|

 
अंततः आप सभी को मेरी ओर से प्रेमपूर्वक आज़ादी का संदेश और बहुत बधाई!

आपकी सह नागरिक,
प्राची

Copyright since 2010

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